July 12, 2025

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ममता कुलकर्णी नहीं…अब बोलिये यामाई ममतानंद गिरी

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एक्स बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी अब किन्नर अखाड़े की बनीं महामंडलेश्वर

प्रयागराज महाकुंभ पहुंचीं ममता ने ली संन्यास की दीक्षा, किया गया पट्टाभिषेक

बेबाक दुनिया ब्यूरो

महाकुंभ नगर। 90 की दशक की हॉट और चर्चित बॉलीवुड एक्ट्रेस रहीं ममता कुलकर्णी अब देश-विदेश में अपने इस नाम से नहीं जानी जाएंगी, बल्कि अब उनको संपूर्ण जगत यामाई ममतानंद गिरी के नाम से जानेगा, क्योंकि उन्होंने संन्यास की दीक्षा ले ली है, साथ ही उनको किन्नर अखाड़े ने महामंडलेश्वर भी बना दिया है।

लिहाजा, ममता कुलकर्णी @ यामाई ममतानंद गिरी= महामंडलेश्वर… किन्नर अखाड़ा। कुल मिलाकर एक्स बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी अब बन गई हैं साध्वी, साथ में महामंडलेश्वर। शुक्रवार (24 जनवरी 25) को एक्स बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी प्रयागराज महाकुंभ पहुंचीं और किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से शाम को मुलाकात कर संन्यास की दीक्षा ली। इसके बाद ममता ने परिवार का पिंडदान किया, फिर संगम में किन्नर अखाड़े के धर्मगुरुओं ने अमृत स्नान कराया।

इसके बाद शाम को आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की अगुवाई में किन्नर अखाड़े में हर-हर महादेव के जयकारों के बीच अखाड़े की धर्मध्वजा के नीचे ममता कुलकर्णी का पट्टाभिषेक कर महामंडलेश्वर की पदवी दी गई। साथ ही उनका नया नाम… यामाई ममतानंद गिरी किया गया। अब उनको किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर के रूप में जाना जाएगा। ममता कुलकर्णी उर्फ महामंडलेश्वर यामाई ममतानंद गिरी ने अपने संन्यास जीवन की शुरुआत प्रयागराज के महाकुंभ से की है।

संन्यास की दीक्षा, पट्टाभिषेक तथा महामंडलेश्वर की पदवी और नए नाम के पहले ममता कुलकर्णी ने एक वीडियो भी जारी किया, जिसमें बताया, साध्वी बनने के बाद वे संगम, काशी और अयोध्या की यात्रा करेंगी। कहा, यह मेरा सौभाग्य होगा कि महाकुंभ की पवित्र बेला में संन्यास लिया। मैंने 23 वर्ष पहले अपने गुरु श्रीचैतन्य गगन गिरि से कुपोली आश्रम में दीक्षा ली थी। अब पूरी तरह से संन्यासिनी बन गई हूं।

ऐसे रहा ममता से महामंडलेश्वर यामाई ममतानंद गिरी तक का सफर

ममता कुलकर्णी बृहस्पतिवार को महाकुंभ नगरी पहुंच गई थीं और शुक्रवार को सुबह सेक्टर-16 संगम लोवर मार्ग स्थित किन्नर अखाड़ा शिविर पहुंचीं। इसके बाद शुरू हुईं उनकी संन्यास दीक्षा की क्रियाएं। आचार्य पुरोहित की मौजूदगी में दो घंटे तक संन्यास दीक्षा हुई। श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर गर्गाचार्य मुचकुंद, पीठाधीश्वर स्वामी महेंद्रानंद गिरि समेत अन्य संतों की मौजूदगी मेंं धार्मिक क्रियाएं हुईं। इसके बाद शुक्रवार शाम को संगम तट पर उनके परिवार का पिंडदान हुआ।

ऐसे बनाया जाता है महामंडलेश्वर

महामंडलेश्वर बनने के लिए बहुत कठिन तपस्या करनी पड़ती है। सबसे पहले किसी गुरु के साथ जुड़कर साधना और आध्यात्मिक शिक्षा लेनी होती है। इस दौरान परिवार, धन और दुनियादारी को छोड़ना पड़ता है। गुरु की देखरेख में भंडारे और सेवा के काम करने होते हैं। सालों की तपस्या और मेहनत के बाद, जब गुरु को लगता है कि शिष्य पूरी तरह तैयार है, तभी महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाती है।

दीक्षा से पहले होती है पूरी जांच

महामंडलेश्वर बनने के लिए आवेदन करने वाले की पूरी जांच की जाती है। अखाड़ा परिषद सुनिश्चित करता है कि आवेदक का बैकग्राउंड साफ सुथरा हो। इसके लिए उसके परिवार, गांव और यहां तक कि पुलिस रिकॉर्ड की भी जांच होती है। अगर किसी तरह की गड़बड़ी मिलती है, तो उसे दीक्षा नहीं दी जाती है।

दीक्षा की ये है पूरी प्रक्रिया

महामंडलेश्वर बनने के लिए दीक्षा की प्रक्रिया में कई चरणों से गुजरना होता है। सबसे पहले अखाड़े को आवेदन दिया जाता है। इसके बाद दीक्षा देकर संत बनाया जाता है फिर नदी किनारे मुंडन और स्नान के बाद परिवार और खुद का पिंडदान करवाया जाता है। इसके बाद हवन फिर गुरु दीक्षा… और आवेदक की चोटी काट दी जाती है। पंचामृत से अभिषेक कर अखाड़े की ओर से चादर भेंट की जाती है। दीक्षा के बाद अपना आश्रम बनाना होता है और जनता के हित के काम करने होते हैं।

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