May 18, 2025

BebakDuniya

साथ सच का

खाने की पोटली+टार्च की रोशनी… और मुगलों का खजाना!

Spread the love

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के असीरगढ़ गांव में कई रातों में ग्रामीणों ने मुगलों के सिक्कों की ख्वाहिश में खोद डाले कई एकड़ खेत

असीरगढ़ गांव के ऐतिहासिक किले के पास पिछले 10 दिनों से शाम ढलते ही कुदाल, फावड़े और मेटल डिटेक्टर संग पहुंच रहे लोग

बेबाक दुनिया डेस्क

नई दिल्ली। कहते हैं कि अफवाहों के सिर-पैर नहीं होते…। पर यहां तो एक अफवाह…ऐसी फैली कि सैकड़ों सिर और हाथ भी कई दिनों से शाम से सुबह-सबेरे तक। भीड़! बस मुगलों के सोने-चांदी के सिक्कों को पाने की ख्वाहिश में हाथ में टार्च, फावड़ा, कुदाल, छन्ना और भोजन-पानी संग खेतों में पहुंच कर…खुदाई में जुट रही और हासिल… फिलहाल कुछ भी नहीं।

स्थान-मध्य प्रदेश का बुरहानपुर जिला। जिले का ऐतिहासिक गांव असीरगढ़ और यहां स्थित मुगलकालीन किला। अब तो सैकड़ों टार्चों की रोशनी से किले के आसपास के खेतों में रात के समय दूर से किसी बस्ती के होने का भी होता है आभास। …और किले के पास स्थित एक खेत से शुरू होती है सिर-हाथ, टार्च, फावड़ा, कुदाल, मिट्टी छानने वाली छन्नी की दास्तां। तीन माह पहले किले के पास इंदौर-इच्छापुर नेशनल हाईवे के निर्माण की खोदाई के दौरान एक खेत से कुछ मुगलकालीन सोने-चांदी के सिक्के मिलने की अफवाह फैली।

इसके बाद से सैकड़ों ग्रामीणों ने पहले तो इस खेत को खोद-खोद कर गड्ढों में तब्दील कर दिया, लेकिन जब कुछ भी हासिल नहीं हुआ तो आसपास के खेतों में भी खोदाई शुरू कर दी। अब पिछले 10 दिनों से यह सिलसिला और तेज हो गया है। करीब पांच सौ से ज्यादा ग्रामीण शाम होते ही खोदाई के औजारों और मिट्टी छानने वाली छन्नी संग खाना-पानी लेकर पहुंच जाते हैं फिर तड़के तक मुगलों के सिक्कों की तलाश करते रहते हैं। इस काम में पुरुषों के साथ महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल होते हैं।

कुछ लोग मेटल डिटेक्टर का भी उपयोग कर रहे हैं। अब तो पास के गांव धूलकोट के लोग भी पहुंचने शुरू हो गए हैं। वैसे! अब तक सिक्कों के तलबगीरों ने कई एकड़ खेतों को गड्ढों में तब्दील कर दिया है, जिससे दिन में खेतों की तरफ जहां भी नजर दौड़ाएं, बस हजारों की संख्या में सिर्फ गड्ढे ही गड्ढे दिखाई पड़ रहे हैं। उधर, घटना से अब प्रशासन के साथ ही शासन भी हैरान और परेशान है। हालांकि, पुलिस की जांच में अभी तक ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है।

मुगलों के जमाने में किले के पास थी टकसाल और कुछ दूर सैनिक छावनी

जानकारों के मुताबिक, मुगलकाल में असीरगढ़ किले के पास सोने-चांदी के सिक्के ढालने वाली टकसाल थी, जो करीब ढाई सौ साल तक रही। जानकारों के मुताबिक, इस टकसाल में मुगलकाल से सिंधियाकाल तक के सिक्के ढलते थे। इसके चलते आसपास बड़ी मात्रा में सिक्के रखे जाते थे, पर युद्ध के दौरान टकसाल के नष्ट होने से कई जगह स्वर्ण भंडार दबा रह गया। जानकारों का यह भी कहना है कि इसके पास ही एक गांव सराय है, जहां सैनिक छावनियां थीं। जब युद्ध के बाद सैनिक लौटकर आते थे तो लूट का सामान खेतों या जमीन में गड्ढा खोदकर छिपा देते थे। इससे अक्सर लोगों को सोने के सिक्के पहले भी मिलते रहे हैं और अभी भी मिल रहे हैं।

कई शहंशाहों का केंद्र रहा असीरगढ़

पुरातत्व के जानकारों के मुताबिक, असीरगढ़ और आसपास का क्षेत्र उस समय सत्ता का बहुत बड़ा केंद्र रहा है। यहां राजा आशा अहीर (गडरियों का सरदार), अंग्रेजी हुकूमत, नादिर शाह, नासिर फारूकी और अकबर का भी आधिपत्य था। इन लोगों के जमाने में बैंकें नहीं होती थीं तो ये लोग जमीन में गड्ढा खोदकर भी खजाने को छिपा देते थे। यहां पुराने सिक्के मिल सकते हैं, पर सोने के ही हो यह जरूरी भी नहीं है।

“असीरगढ़ गांव का किला और आसपास का क्षेत्र भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में है। मौके पर जाकर स्थित को देखेंगे और अगर कोई भी व्यक्ति खोदाई करता मिला तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।” – विपुल मेश्राम, प्रभारी अधिकारी, पुरातत्व विभाग

Loading

About The Author


Spread the love